वाल्ड सिटी ऐरिया का दर्द जानो- सदर बाजार में कारोबार कठिन

//वाल्ड सिटी ऐरिया का दर्द जानो- सदर बाजार में कारोबार कठिन

वाल्ड सिटी ऐरिया का दर्द जानो- सदर बाजार में कारोबार कठिन

By | 2017-12-14T06:28:44+00:00 October 17th, 2017|News|

दिल्ली, वाल्ड सिटी के नाम से मशहूर पुरानी दिल्ली का चांदनी चौक से सटा क्षेत्र व्यापारिक महत्व के लिए ज्यादा जाना जाता है। लुटियन की दिल्ली भी इसी बात का द्योतक है। सदर बाजार से लेकर कुतुब रोड, नया बाजार, खारी बावली, फतेहपुरी, चांदनी चौक, नई सड़क, चावड़ी बाजार, जामा मस्जिद एवं अन्य छोटे-मोटे व्यापारिक क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार का प्रतिदिन थोक का कारोबार करोड़ों अरबों के हिसाब से किया जाता है। दिल्ली और आसपास के व्यापारी से लेकर आम ग्राहक भी इन्हीं बाजारों से खरीददारी करते हैं। सदर बाजार एक ऐसा व्यापारिक केन्द्र है जिसमें लगभग सभी गतिविधियां समाहित हैं। इसके साथ ही नया बाजार है जो अनाज मंडी के नाम से प्रसिद्ध है साथ ही खारी बावली और फतेहपुरी है जो कैमिकल और ड्राई फ्रूट की मंडी के नाम से मशहूर है। इसके साथ ही सटा हआ है चांदनी चौक का इलाका जहां ज्यादातर कपड़े का व्यापार होता है। इसी के साथ सटी हुई नई सड़क और फिर चावड़ी बाजार व्यापारिक केन्द्र है जहां कागज, लोहा इत्यादि थोक के आधार पर बिक्री किया जाता है। इसी वाल्ड सिटी क्षेत्र में प्रतिदिन लाखों की तादाद में व्यापारी और ग्राहक आते-जाते रहते हैं परन्तु यहां सुविधा नाम की कोई चीज नहीं नजर आती।
इन व्यापारिक केन्द्रों से प्रतिदिन सरकार को अरबों रुपए का राजस्व करों द्वारा मिलता है। इसके बावजूद भी यह समूचा क्षेत्र प्रशासन की निगाहों में नजर अंदाज होता रहा है और हो रहा है।
इन समूचे व्यापारिक क्षेत्रों में कुकुरमुत्ते की तरह अनेकों व्यापारिक संघ भी बने हुए हैं और इनके साथ सटे हुए रिहायशी क्षेत्रों में आरडब्लयूए। इसके बावजूद भी यह समूचा क्षेत्र व्यापारिक क्षेत्र न लगते हुए एक सब्जी मंडी की तरह लगता है जहां धक्कम पेली के साथ भीड़ ही भीड़ नजर आती है और हर कोई अपना काम करके यहां से भागना चाहता है। यह समूचा क्षेत्र जहां व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है ठीक वहीं पर हजारों के लिए रोजगार का जरिया भी है। इस समूचे इलाके में प्रतिदिन हजारों गाड़ियां आती-जाती रहती हैं। इनके अलावा आम ग्राहक के यात्रा साधन भी हैं। सामान लाने ले जाने के लिए ऑटो, ठेले, हाथ रिक्शे भी मौजूद रहते हैं। दिखावे के लिए यहां पर जगह-जगह पुलिस चौकियां भी हैं जो सिर्फ देखने के लिए हैं या व्यवस्था नियंत्रण के नाम पर मात्र औपचारिकता निभाने के लिए ड्यूटी पर खड़े रहते हैं। बारा टूटी चौक हो या कुतुब रोड की सड़कें, नया बाजार हो या चावड़ी बाजार, सड़कांे पर विभिन्न वाहन बेतरतीब तरीके से सड़कों को घेरकर ऐसे खड़े होते हैं कि पैदल निकलना भी मुष्किल हो जाता है। मात्र चांदनी चौक में पार्किंग सुविधा है जो समुचित नहीं है। किसी भी प्रकार की अनहोनी या प्राकृतिक या अप्राकृतिक दुर्घटना के घट जाने पर यहां से निकलना भी मुश्किल हो जाता है। 1996 में हुए धमाके की स्थिति को नजरअंदाज किया नहीं जाना चाहिए था परन्तु वैसी ही स्थिति की पुर्नकल्पना ही रोंगटे खड़े करने के लिए काफी है। आजकल इन क्षेत्रों में ई रिकषाओं ने और भी कहर मचा रखा है जिनकी आने-जाने की कोई चेकलिस्ट भी नहीं है। कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, कोई नहीं जानता। व्यापारिक केन्द्र होेने के कारण यहां कोई भी, कभी भी, कितनी ही बार आ जा सकता है। ऐसे में कोई भी असामाजिक तत्व इस व्यवस्था का भरपूर लाभ उठाकर क्षेत्र को नुकसान पहुंचा सकता है।
सरकार सुविधा देने के नाम पर शून्य है परन्तु टैक्स बढ़ाने के नाम पर सबसे आगे। एक्साइज ड्यूटी बढ़ाना, वैट की दरें मंहगी करना, सेवा कर में बढ़ोत्तरी इत्यादि इत्यादि से सरकार को राजस्व कमाना आता है परन्तु उसका कुछ प्रतिशत उन क्षेत्रों के विकास पर खर्च करना नहीं आता जहां से उन्हें प्रतिदिन करोड़ों रुपए का राजस्व मिल रहा है। असूलन इस समूचे क्षेत्र में सीसीटीवी कैमरे लगे होने चाहिएं जिनसे हर प्रकार की गतिविधि पर नियंत्रण रखा जा सके। रिक्शे, ठेले, ऑटो जहां मर्जी खड़े कर दिए जाएं, कोई पूछने वाला नहीं। कई बार तो पैदल चलने में भी दिक्कत होने लगती है। महिलाओं की जरुरतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।
बारिशों के दिनों में तो यहां चलना मुश्किल हो जाता है। ज्यादा बारिश होने पर पानी की ऊचित निकास व्यवस्था न होने के कारण कई बार तो दुकानों के अंदर भी पानी भर जाता है। इस संबंध में शिकायत करने पर न विधायक सुनता है और न ही सांसद। बस भुगतते सिर्फ वह व्यापारी और ग्राहक हैं जिनके द्वारा किए गए व्यापार से प्राप्त किए गए राजस्व की बदौलत एमएलए और एमपी को करोड़ों रुपए की विकास राशि विकास करने के लिए मिलती है और क्षेत्र के विकास पर खर्च नहीं होती। यदि ईमानदारी से यह एक एमएलए/एमपी की चुनाव अवधि के दौरान यही विकास राशि उपयुक्त ढंग से खर्च की होती तो इन क्षेत्रों की दशा अलग कहानी कह रही होती।
एसोसिएशनें भी हैं और उन्हें चलाने वाले भी। शिकायतें भी दर्ज होती हैं और फाइलें भी चलती हैं परन्तु सब हवा-हवाई हो रहा है, वास्तविकता से कोसो दूर है। नतीजतन सदर बाजार और उसके आसपास का सटा हुआ ऐतिहासिक व्यापारिक केन्द्र आज इतनी बदतर स्थिति में नहीं होता।
कब होगी सुनवाई इन महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थलों की, कब मिलेगी राहत यहां पर हजारों व्यापारियों को, कर्मचारियों को और आने जाने वाले आम और विशेष ग्राहकों को जो सुविधा की आस लगाकर यहां आते हैं।